डॉर्क्‍टस डे पर विशेष : हम वही करें, जिसके लिए हमने डॉक्टर बनना तय किया था

चिकित्सक का दर्जा  हमेशा ईश्वर के बाद माना जाता है. यह संबंध युग–युगांतर तक चलता रहेगा. ईश्वर के मुख्य दो गुण होते हैं- सबका भला और किसी का नुकसान नहीं करना. व्यक्ति ईश्वर को सिर्फ उन परिस्थितियों में याद करता है– जब वह कष्ट में हो या दर्द से पीड़ित हो. चिकित्सा शास्त्र की नीति है मरीज के कष्टों को कम करना और उसके दुखों को कम करना. चिकित्सक का काम भी आपातकालीन परिस्थितियों में कष्टों को कम करना ही है.
कोई भी मरीज चिकित्सक के पास में इमरजेंसी या आपातकालीन परिस्थिति में इसलिए आता है कि अफोर्डेबल तरीके से उसके दर्द का निवारण हो, इसलिए इमरजेंसी सर्विस का व्यवसायीकरण नहीं होना चाहिए. यही व्यवसायीकरण मरीज और चिकित्सक के बीच असंतोष का बड़ा कारण बनता है. जब मरीज और उसके परिजनों की अपेक्षा पूरी नहीं होती, तब क्रोध और हिंसा जन्म लेती है.

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