बीजेपी का कर्नाटक में ऑपरेशन होगा सफल?

कर्नाटक में सोमवार को दो कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफ़े के बाद ये सवाल खड़ा हो गया है कि क्या जेडीएस-कांग्रेस की गठबंधन सरकार को गिराने का ऑपरेशन कमल 4.0 आख़िरकार सफल होगा कि नहीं. नाम ना बताने की शर्त पर एक बीजेपी नेता ने बीबीसी हिंदी को बताया, "अगले कुछ दिनों में हर रोज़ एक या दो सदस्य रोज़ विधायक पद से इस्तीफ़ा देंगे."
बेलगावी ज़िले के गोकक विधानसभा क्षेत्र से विधायक रमेश जरकिहोली को जनवरी में मुंबई के एक होटल में एक हफ्ते तक कांग्रेस के अन्य विधायकों के साथ रखा गया था. ऑपरेशन कमल 3.0 जनवरी में विफल हो गया था क्योंकि भाजपा पर्याप्त संख्या नहीं ला सकी थी.
नए ऑपरेशन कमल का उद्देश्य भी वही है. इसका मक़सद कांग्रेस और जेडीएस विधायकों को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दिलवाना है, ताकि विधायकों की संख्या 209 पर आ जाए और जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन बहुमत खो दे. नाम ना बताने की शर्त पर एक बीजेपी नेता ने बीबीसी हिंदी को बताया, "अगले कुछ दिनों में हर रोज़ एक या दो सदस्य रोज़ विधायक पद से इस्तीफ़ा देंगे." उसके बाद भाजपा 224 सदस्यों की विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी रह जाएगी जिसके पास फ़िलहाल 105 विधायक हैं.
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए, भाजपा को रमेश जरकिहोली और आनंद सिंह के अलावा अन्य 13 सदस्यों की आवश्यकता है. जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन में फ़िलहाल में निलंबित कांग्रेस विधायक रोशन बेग को मिलाकर 117 सदस्य हैं. ऑपरेशन कमल कर्नाटक में पैदा हुआ आइडिया है जिसे 2008 में सफलतापूर्वक लागू किया गया था जब दक्षिण भारत में पहली बार भाजपा सत्ता में आई थी, 224 में से 110 सीटें जीतकर.
तब ऑपरेशन कमल के मुताबिक़ कांग्रेस और जेडीएस के विधायक व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया और फिर उन्हें उन्हीं विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा ने टिकट दिया. आठ विधायक जो ऑपरेशन का हिस्सा बने, उनमें से पांच भाजपा के टिकट पर चुने गए, जबकि तीन अन्य हार गए. लेकिन ऑपरेशन ने भाजपा को विधानसभा में बहुमत हासिल करने में मदद की.
ऑपरेशन कमल 2.0 दिसंबर 2018 में हुआ था जब 22 दिसंबर को मंत्रालय के विस्तार के दौरान जरकिहोली को मंत्रालय में प्रदर्शन ना दिखाने के आधार पर हटा दिया गया था. अगला ऑपरेशन कमला 3.0 जनवरी 2019 में हुआ था जब जरकिहोली मुंबई में मुट्ठी भर विधायकों को ले गए थे. लेकिन, यह अभियान भी विफल रहा क्योंकि आवश्यक संख्या तक नहीं पहुंचा जा सका.
बहरहाल, आनंद सिंह का इस्तीफ़ा कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के लिए हैरानी भरा है. जल संसाधन मंत्री डीके शिवकुमार ने कहा कि, "मैं उनके इस्तीफ़े से स्तब्ध हूं." जब कांग्रेस विधायकों को दल बदलने से रोकने के लिए जनवरी में रिज़ॉर्ट में रखा गया था तो एक विधायक जे गणेश ने आनंद सिंह पर कथित हमला किया और आनंद सिंह को आंख के पास गंभीर चोटों के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
लेकिन अब जब आनंद सिंह ने राजभवन में राज्यपाल वजुभाई वाला को अपना इस्तीफ़ा पेश किया तो उन्होंने वजह बताई कि जिस तरह से गठबंधन सरकार ने जिंदल स्टील वर्क्स (जेएसडब्ल्यू) को ज़मीन बेची थी, उससे वे परेशान थे. भाजपा का कोई नेता फ़िलहाल इस बारे में रिकॉर्ड पर बोलने के लिए तैयार नहीं था. नाम न छापने की शर्त पर इन नेताओं ने बस बताया कि इस्तीफ़े दो पार्टियों में आंतरिक समस्याओं के कारण हो रहे थे और भाजपा को इससे कोई लेना-देना नहीं था.
एक भाजपा नेता ने कहा, "अगर वे अपने आप ही इस्तीफ़ा दे देते हैं, तो हमें इससे कोई लेना-देना नहीं है. अगर सब उम्मीद के मुताबिक़ होता है तो हम सरकार बना सकते हैं और अक्तूबर या दिसंबर में मध्यावधि चुनाव के लिए जा सकते हैं महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के साथ."
लेकिन मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने, जो अभी अमरीका की निजी यात्रा पर हैं, एक ट्वीट में कहा, ''मैं कालभैरवेश्वर मंदिर के नींव समारोह (न्यू जर्सी में) में हूं. मैं टीवी चैनल देख रहा हूं. बीजेपी सरकार को अस्थिर करने के दिन में सपने देख रही है.''
पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता वी.एस. उग्रप्पा ने बीबीसी हिंदी को बताया, ''जो (भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री) अमित शाह और येदियुरप्पा कर रहे हैं, वो राज्य सरकार के लिए नहीं बल्कि लोकतंत्र और संविधान के लिए ख़तरा हैं. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी एक राष्ट्र, एक चुनाव के बारे में बात करते हैं, लेकिन यह केवल तभी माना जा सकता है जब लोकतंत्र को खोखला ना किया जाए."

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