झारखंड में चौराहे पर महागठबंधन, सीट शेयरिंग पर अलग-अलग सुर

 लोकसभा चुनाव में परास्त होने के बाद विपक्षी महागठबंधन संभलता नहीं दिख रहा है। सभी दल अलग-अलग सुर अलाप रहे हैं। स्थिति इतनी विकट है कि चुनाव के बाद विपक्षी महागठबंधन में शामिल दल आपस में बैठक तक नहीं कर पाए। अलबत्ता सभी दलों ने अलग-अलग बैठकें कर एक-दूसरे पर हार का ठीकरा जरूर फोड़ा। कांग्र्रेस में उठापटक ज्यादा मची। खाता खुलने के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने इस्तीफे की पेशकश की। उनपर गुटों में बंटे नेताओं ने इसके लिए दबाव भी बनाया।
अभी भी कांग्र्रेस इससे उबरा नहीं है। उधर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने शीर्ष कमेटियों की मैराथन बैठकें की। इससे पूर्व झारखंड मुक्ति मोर्चा ने यह संदेश देने की भी कोशिश की कि उसके कैडरों का वोट ट्रांसफर हुआ लेकिन अन्य विपक्षी दल उनके उम्मीदवारों को वोट ट्रांसफर नहीं करा पाए। अलबत्ता झारखंड मुक्ति मोर्चा के भितरखाने यह आवाज उठी है कि विधानसभा चुनाव अलग होकर लड़ा जाए, लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा  के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन इसके पक्ष में नहीं हैं।
वे तालमेल कर चुनाव लडऩे के पक्षधर हैं और सीटों के बंटवारे को लेकर आशावान भी। हेमंत सोरेन विपक्षी दलों की संयुक्त समिति के प्रमुख भी हैं। उन्होंने दावा किया था कि जून के अंतिम सप्ताह में सभी विपक्षी दल आपस में बैठकर सीट शेयरिंग पर बातचीत करेंगे। यह डेडलाइन बीत चुका है। इसकी गुंजाइश भी फिलहाल बनती नहीं दिख रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटों पर दावेदारी करेगा।
पार्टी की दावेदारी लगभग 40 सीटों पर होगी। देखना यह होगा कि विपक्षी धड़े के अन्य दल उसकी इस मांग को कहां तक मानते हैं? कांग्र्रेस इसके लिए आलाकमान के भरोसे हैं तो बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा काफी आसान से हेमंत सोरेन का दावा मानने से रही। ऐसे में विपक्षी महागठबंधन के बीच तालमेल की राह में परेशानी आएगी।

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