संघर्ष, संपर्क और संवाद के बाद अखिलेश करेंगे संगठन की सर्जरी! मायावती के साथ गठबंधन से नाराज थे कार्यकर्ता

अगर संगठन मजबूत हो तो कोई भी लड़ाई जीतना बहुत आसान हो जाता है। भारतीय जनता पार्टी माइक्रोमैनेजमेंट के बल पर ही आज इतनी मजबूत स्थिति में पहुंची है। भले ही उसको यहां तक पहुंचने में काफी समय लग गया, लेकिन अब उनके नेता दावे के साथ कहते हैं कि हम देश में पचास साल तक राज करेंगे। पिछले तीन चुनावों में लगातार हार के बाद अब समाजवादी पार्टी अपने संगठन को मजबूत बनाने के लिए ओवरहालिंग शुरू करेगी। 
संघर्ष और संगठन के बल पर 2012 में मिली जीत
समाजावादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव मजबूत संगठन और खुद के संघर्ष के बल पर 2012 में मायावती की सरकार को उखाड़ फेंकने में सफल हुए थे। लेकिन उसके दो साल बाद हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। समाजवादी पार्टी को केवल पांच सीटें मिलीं, जिसमें से दो सीटें पर खुद मुलायम सिंह यादव चुनाव जीते। ये दो सीटें मैनपुरी और आजमगढ़ थीं। इन दोनों सीटों को यादवों का गढ़ माना जाता है। बाद में मुलायम सिंह ने मैनपुरी से इस्तीफा दे दिया, जहां से उनके पोते तेज प्रताप जीतकर सांसद बने। इसके अलावा बदायूं से भतीजे धर्मेंद्र यादव, कन्नौज से बहू डिंपल और फिरोजाबाद से रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे। इसके अलावा सपा सभी सीटों पर चुनाव हार गई। 
2014 के चुनाव के नतीजों से हार हो गई थी तय  
लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद यह तय हो गया कि अगले विधानसभा चुनावों में सपा की स्थिति अच्छी नहीं रह सकती है। नतीजा यह हुआ कि 2017 में समाजावादी पार्टी को महज 47 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। भारतीय जनता पार्टी ने 300 से अधिक सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों में समाजावादी पार्टी को महज पांच सीटें ही मिलीं। 

 
संघर्ष, संपर्क और संवाद के साथ मजबूत संगठन
लगातार तीन चुनावों में मिली हार और बहुजन समाजपार्टी के साथ गठबंधन टूटने के बाद अखिलेश यादव की आंखें अब शायद खुल रही हैं। अब अखिलेश यादव संघर्ष, संपर्क और संवाद के साथ संगठन को मजबूत करने पर जोर दे रहे हैं। संगठन में मजबूती लाने के लक्ष्य से फेरबदल करके और आसपास खुशामद करने वाले लोगों को दूर करके अखिलेश  तेजी से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं। 
खुशामद करने वालों से घिरे अखिलेश यादव
दरअसल, अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री थे, तो उनके आसपास खुशामद करने वालों की एक फौज खड़ी हो गई थी, जिससे उनको भारी नुकसान हुआ। खुशामद करने वाले लोगों ने अपना नंबर बढ़ाने के चक्कर में उनको जमीनी हकीकत से कभी रू-ब-रू नहीं होने दिया। जिसका नतीजा यह हुआ कि जमीना कार्यकर्ता उनसे दूर होता गया। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी के साथ समझौता करने के कारण उन जगहों पर इनका कार्यकर्ता काफी नाराज दिखा, जहां पर सपा के प्रत्याशी नहीं उतार गए। बहुजन समाज पार्टी के साथ समझौता जातीय अंकगणित के आधार पर किया गया था, लेकिन इस अंकगणित पर भाजपा की केमिस्ट्री भारी पड़ गई। 

विदेश से वापस आते ही शुरू होगी ओवरहालिंग
अखिलेश यादव इस समय छुट्टियां मनाने के लिए विदेश गए हैं। वापस आते ही संगठन में बड़े बदलाव की संभावना जताई जा रही है। माना जा रहा है कि जुलाई के पहले हफ्ते में वापस आने पर निचले स्तर से लेकर ऊपरी स्तर पर संगठन में बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं। इस आमूलचूल परिवर्तन से कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल बढ़ेगा। उम्मीद जताई जा रही है कि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष को हटाकर किसी और को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। 

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