कश्मीर पर अमित शाह की ‘अटल’ पॉलिसी, इन दो रास्तों पर चल कर होगी नई सुबह

कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत. अटल बिहारी वाजपेयी के ये तीन शब्द जम्मू-कश्मीर के लोगों के जेहन में मानो धंस गये हों. जब 2004 के लोकसभा चुनाव में वाजपेयी वापसी नहीं कर पाए तो घाटी के लोगों ने इसे कश्मीर के लिए बड़ा नुकसान करार दिया था.
ये दुर्भाग्य है कि 2004 से 2014 के बीच कांग्रेस की अगुआई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार अटल के रास्ते को आगे नहीं बढ़ा पाई. एक तरफ वाजपेयी ने जनरल मुशर्रफ के साथ बातचीत की पहल की तो जरूरत पड़ने पर आयरन फिस्ट पॉलिसी भी अपनाई. वहीं दूसरी ओर उन्होंने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नरम गुट को बातचीत के लिए बुलाया. एनएन वोहरा घाटी के लिए स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव बनाए गए. 2002 में शानदार तरीके से विधानसभा चुनाव हुए और मुफ्ती मोहम्मद सईद सीएम बने.
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मुफ्ती और अटल की जोड़ी ने हीलिंग टच की पॉलिसी पर ज़ोर दिया. आतंकवाद से प्रभावित लोगों के साथ सहानुभूति घाटी के लोगों को देश की मुख्य धारा से जोड़ने में मददगार साबित हुई. मुफ्ती ने इखवान पर बैन लगा दिया. ये सेना समर्थक मिलिशिया थी जो आतंकवादियों से लोहा लेती थी. इसकी काफी आलोचना हो रही थी. आम नागरिकों की सुविधा के लिए अटल सरकार के सहयोग से कई कदम उठाए गए. यहां तक कि हिज्बुल मुजाहिदीन में फूट पड़ गयी और माजिद डार गुट वार्ता टेबल पर आ गया.
मनमोहन सरकार ने सारे मौके गंवाए
लेकिन मनमोहन सरकार के दौरान ये सारे मौके गंवा दिए गए. अटल सरकार में उप विदेश मंत्री रहे उमर अब्दुल्ला खुद 2008 में जम्मू-कश्मीर के चीफ मिनिस्टर बने लेकिन इस युवा नेता ने भी कश्मीर पॉलिसी ( kashmir policy) के मामले में निराश ही किया.
2008 में हुर्रियत फिर से एक हो गया. मुंबई में 26/11 की घटना हुई. पाकिस्तान के साथ समग्र बातचीत स्थगित कर दी गई. उधर कश्मीर में भी अलगाववाद फिर जोड़ पकड़ने लगा. स्टोन पेल्टिंग युवाओं का शगल बना तो ये अब्दुल्ला सरकार के साथ मनमोहन सरकार की भी विफलता थी.
अमित शाह की स्मार्ट पॉलिसी
2014 में सरकार बनने के तुरंत बाद दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए नरेंद्र मोदी ने पाक पीएम को शपथ ग्रहण में आमंत्रित किया. लेकिन घाटी में आतंकवादियों को सीमा पार से लगातार भेजने और पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले से माहौल बिगड़ गया. मोदी ने राष्ट्र धर्म निभाते हुए देश की सुरक्षा से कोई समझौता न करने का एलान किया. ये उरी आतंकी हमले के जवाब में हुए पहले सर्जिकल स्ट्राइक से साबित हो गया.
मुफ्ती मोहम्मद सईद की विरासत संभाल रही उनकी बेटी और पूर्व मुख्‍यमंत्री महबूबा मुफ्ती को मोदी सरकार ने पूरा सहयोग देना जारी रखा. हालांकि महबूबा राजनीति चमकाने के लिए आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई पर सवाल उठाती रहीं. बुरहान वानी की अगुआई में होम ग्रोन मिलिटेंट्स ने घाटी के युवाओं को गुमराह करने की कोशिश की.
हालांकि मोदी सरकार ने राज्य में बीजेपी के सहयोग से चल रही सरकार की परवाह न करते हुए आतंकियों के सफाए की मुहिम चलाई और रिकॉर्ड संख्या में आतंकी मारे गए. महबूबा की नीतियों से असहमति जताते हुए बीजेपी ने पिछले साल समर्थन वापस ले लिया. पहले राज्यपाल शासन और अब राष्ट्रपति शासन के दौरान सेना को खुली छूट मिली और बुलेट का जवाब बुलेट से दिया गया. पुलवामा अटैक के बाद पाकिस्तान पर एरियल सर्जिकल स्ट्राइक ने दक्षिण एशिया की सामरिक जड़ता को समाप्त कर दिया.
पहले की सरकारों के उलट ये स्पष्ट हो चुका है कि मोदी की अगुआई वाली सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीमा पार जाकर दुश्मनों के ठिकानों पर हमला करने से नहीं हिचकेगी. प्रचंड बहुमत से दोबारा सत्ता पर काबिज होने वाले नरेंद्र मोदी ने संगठन संभाल रहे अमित शाह को गृह मंत्रालय की अहम कमान सौंपी. सारी नज़रें अमित शाह की कश्मीर पॉलिसी पर है. 32 साल में वे पहले ऐसे गृह मंत्री हैं जिनके कश्मीर दौरे पर बंद नहीं बुलाया गया.
अमित शाह सबसे पहले आतंकियों से लोहा लेते शहीद हुए पुलिस अफसर इरशाद खान के परिवार से मिलने अनंतनाग पहुंचे. उनकी पत्नी को सरकारी नौकरी का पत्र सौंपा. शहीद खान के पांच साल के बेटे के साथ अमित शाह की तस्वीर बहुत कुछ कहती है. अमित शाह मानवीयता यानी इंसानियत के वाजपेयी फॉर्मूले पर बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं.

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