यूपी में फिर सक्रिय होगा एंटी रोमियो स्क्वॉड, लेकिन क्या पुलिस भी सुधरेगी?

उत्तर प्रदेश में महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ रहे अपराधों को रोकने के लिए राज्य सरकार 1 से 31 जुलाई तक विशेष अभियान चलाने जा रही है. इसके तहत पहले से चल रहे एंटी रोमियो अभियान को पुनर्जीवित किया जाएगा और इसके लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा. प्रदेश के मुख्य सचिव अनूप चन्द्र पाण्डेय की ओर से सभी ज़िलों के ज़िला अधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को निर्देश जारी किए गए हैं कि लड़कियों की सुरक्षा के लिए 1 से लेकर 31 जुलाई तक 'बालिका सुरक्षा अभियान' नाम से विशेष अभियान चलाया जाएगा.
इसके तहत प्रशासन की ओर से बनाई गई टीमें स्कूलों और कॉलेजों में जाकर बच्चियों को जागरूक करेंगी. इस टीम में दो पुलिस अधिकारियों, कर्मचारियों के अलावा महिला और बाल विकास विभाग के विशेषज्ञ शामिल होंगे, जो स्कूलों और कॉलेजों में जाकर बच्चियों को जागरूक करेंगे. इससे पहले भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महिलाओं और बालिकाओं से छेड़खानी करने और उन्हें परेशान करने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने को कह चुके हैं. मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों उच्च अधिकारियों के साथ हुई बैठक में एंटी रोमियो स्क्वॉड को भी दोबारा सक्रिय करने के निर्देश दिए थे.
राज्य में स्कूल और कॉलेज खुलने वाले हैं तो सरकार पहले से ही सक्रिय हो गई है और एंटी रोमियो अभियान को नए सिरे से सक्रिय बनाने का अभियान चलाने के निर्देश दिए गए हैं. राज्य के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने बताया कि इसके तहत पुलिस असामाजिक और अपराधी तत्वों पर निगरानी तो रखेगी ही, ज़िलेवार असामाजिक तत्वों की एक सूची भी तैयार की जाएगी.
दरअसल एंटी रोमियो अभियान उसी समय काफी ज़ोर शोर से चला था जब राज्य में बीजेपी के नेतृत्व में नई सरकार बनी थी, लेकिन इस अभियान को सफलता कम आलोचना का सामना ज़्यादा करना पड़ा. अब नए सिरे से जो अभियान चलाया जाएगा उसे लेकर भी महिलाओं और छात्राओं में कोई ख़ास उत्साह नहीं है.
लखनऊ में इस बारे में कुछ छात्राओं से बातचीत के दौरान पता चला कि अभियान का मक़सद तो अच्छा है लेकिन इसके नाम पर जिस तरह की 'मॉरल पुलिसिंग' हुई, उससे उन्हीं को सबसे ज़्यादा परेशानी उठानी पड़ी, जिनके लिए ये अभियान चलाया गया था. राज्य में लगातार बढ़ रहे अपराध, बलात्कार और हत्या की घटनाओं से हरकत में आई सरकार अपने पुराने अभियान को फिर से गति देना चाह रही है और उसमें कुछ नए परिवर्तन भी लाना चाह रही है. लेकिन ये सवाल भी उठ रहे हैं कि शुरू में एंटी रोमियो स्क्वॉड को सफलता क्यों नहीं मिली और अब उसमें ऐसा क्या नया हो सकेगा जिससे कि अपराधियों में डर पैदा हो सके.
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इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार अमिता वर्मा कहती हैं, "क़ानून में आप चाहे जितने बदलाव करिए, जब तक उसका क्रियान्वयन ठीक से नहीं होगा, तब तक कोई लाभ नहीं है. एंटी रोमियो स्क्वॉड बना तो दिया गया लेकिन किस तरह से काम करेगा, क्या काम करेगा, कौन ज़िम्मेदारी लेगा जैसी तमाम बातें स्पष्ट नहीं थीं. ज़िले के पुलिस अधीक्षक या उनके स्तर के अधिकारियों ने जिस सिस्टम के तहत चाहा, उसका क्रियान्वयन किया. हां, ये ज़रूर है कि अभी जो निर्देश दिए गए हैं, यदि उनका सख्ती से पालन होता है तो निश्चित रूप से स्कूल-कॉलेज जाने वाली छात्राओं को लाभ मिलेगा और ख़ुद को वो सुरक्षित महसूस कर सकेंगी." एंटी रोमियो की टीम में पुलिस को ऐसे लोगों को पकड़ने का काम दिया गया जो स्कूल-कॉलेज जाने वाली लड़कियों और महिलाओं को छेड़ते थे.
पुलिस को ये अधिकार दिए गए कि ऐसा करने वाले को वो तत्काल हिरासत में ले लेगी और थाने लाकर उनकी काउंसलिंग की जाएगी. लेकिन इसकी आड़ में जब तमाम जोड़ों को कथित तौर पर जगह-जगह पुलिस परेशान करने लगी तो हंगामा होने लगा.
देखते ही देखते, इतनी तेज़ गति से चलने वाला राज्य सरकार का यह महत्वाकांक्षी अभियान धराशायी हो गया और महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध और छेड़छाड़ की घटनाओं में बढ़ोत्तरी ही होती चली गई.
उत्तर प्रदेश में महिलाओं से छेड़छाड़ जैसी शिकायत के लिए बनी वीमेन पॉवर लाइन यानी 1090 के लंबे समय तक इंचार्ज रहे पुलिस उपमहानिरीक्षक नवनीत सिकेरा कहते हैं, "ये अभियान सफल नहीं रहा, ऐसा कहना ठीक नहीं है. दरअसल, शुरू में पूरी तैयारी से इसे नहीं शुरू किया गया और दूसरा इसे लेकर पुलिसकर्मी भी अति उत्साह में आ गए और उन्होंने अपने ढंग से इस पर अमल करना शुरू कर दिया जिससे कुछ लोगों को परेशानी भी हुई.''
सिकेरा का कहना है कि जिस तरह की घटनाएं शुरुआत में हुईं, वैसी अब नहीं हो रही हैं क्योंकि पुलिसकर्मियों को अब इस बारे में बाक़ायदा प्रशिक्षित किया जा चुका है. उनका कहना है कि ये बंद नहीं हुआ है बल्कि पुलिस अब उस तरह से इस पर अमल नहीं कर रही है जिसकी वजह से ये शुरुआत में चर्चाओं में था.
दरअसल, शुरुआती दौर में एंटी रोमियो के नाम पर पुलिस वाले सीधे तौर पर 'मॉरल पुलिसिंग' करने लगे और इसकी ज़द में कई ऐसे लोग भी आ गए जिनका छेड़छाड़ जैसी घटनाओं से कोई लेना-देना नहीं था. कई मामलों में इन बातों को बाद में पुलिस अधिकारियों ने भी स्वीकार किया.
वहीं दूसरी ओर, पुलिस विभाग में एंटी रोमियो स्क्वॉड को लेकर न तो कोई योजना बनी है और न ही कोई अलग मॉनीटरिंग सिस्टम. एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ये ज़िले के अधिकारियों पर निर्भर है कि वे कैसे इसे लागू करते हैं, कोई एकरूपता नहीं है और न ही केंद्रीय स्तर पर कोई मॉनिटरिंग सिस्टम. उनके मुताबिक, इसे कहीं क्षेत्राधिकारी स्तर का अधिकारी लीड कर रहा है तो कहीं एडिशनल एसपी स्तर का.
जहां तक एंटी रोमियो स्क्वॉड के प्रभाव या असर का सवाल है तो इसके बारे में जानकारों का कहना है कि अगर यह असरदार रहता तो महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों में निश्चित तौर पर कमी आती, जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं.

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