श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बहाने नड्डा का नेहरू पर आरोप, जानें उस रहस्यमयी मौत की कहानी

आज श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि है. महज़ 51 साल की उम्र में मुखर्जी की मौत जम्मू-कश्मीर में तब हुई थी जब वो एक राजनीतिक अभियान के तहत गिरफ्तार कर लिए गए थे और नज़रबंदी में थे. बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आरोप लगाया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने मुखर्जी की मौत पर कोई जांच नहीं बैठाई जबकि पूरा देश ऐसा चाहता था.
गौरतलब है कि मुखर्जी खुद नेहरू कैबिनेट का हिस्सा रहे थे लेकिन मतभेदों ने उन्हें कांग्रेस से छिटका दिया. कश्मीर में धारा 370 को वो कभी स्वीकार नहीं कर पाए. उन्होंने साफ कहा था- एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे.
ये बात मुखर्जी के लिए असहनीय थी कि भारत सरकार से परमिट लेकर ही जम्मू-कश्मीर में प्रवेश किया जा सकता था. मुखर्जी ने बिना परमिट लिए ही सूबे में घुसने की योजना बना ली. ठीक इस वक्त जम्मू-कश्मीर के अंदरुनी हालात भी ठीक नहीं थे. जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला पर सुन्नी कश्मीरियों और डोगरा समुदाय के लोगों का दमन करने के आरोप लग रहे थे.
महाराजा हरिसिंह का प्रभाव समाप्त हो चला था इसलिए डोगरा अपने उत्पीड़न से बचने के नाम पर संगठित हो रहे थे. पंडित प्रेमनाथ डोगरा और बलराज मधोक ने मिलकर जम्मू व कश्मीर प्रजा परिषद पार्टी गठित कर ली जिसने राज्य के भारत संघ में पूर्ण विलय का लक्ष्य लेकर लड़ाई लड़नी शुरू कर दी.
8 मई 1953 की सुबह मुखर्जी ने दिल्ली रेलवे स्टेशन से पैसेंजर ट्रेन ली और समर्थकों के साथ वाया पंजाब जम्मू के लिए निकले. उनका साथ बलराज मधोक, अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई नेता और पत्रकार दे रहे थे. जालंधर पहुंचने के बाद मधोक को वापस भेजकर मुखर्जी ने अमृतसर की ट्रेन पकड़ी.
मुखर्जी को बिना रोकटोक के माधोपुर की सीमा के पास पहुंचने दिया गया. यहां से उन्हें पंजाब की सीमा पार करके जम्मू-कश्मीर में एंट्री करनी थी. बीच में एक नदी बहती थी जिसके दोनों किनारों को एक पुल जोड़ता था. बीच पुल जब मुखर्जी की जीप पहुंची तो देखा गया कि जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों का दस्ता खड़ा है. उन्हें सार्वजनिक सुरक्षा एवं शांति के खिलाफ गतिविधि करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.
श्रीनगर से दूर एक मकान को उपजेल बनाकर उन्हें रखा गया. दस फीट लंबे और ग्यारह फीट चौड़े एक कमरे में मुखर्जी को पुलिस ने बंद किया. किनारे के दो छोटे- छोटे कमरों में गुरुदत्त वैद्य और टेकचंद बंद किए गए. मुखर्जी के किसी दोस्त या रिश्तेदार को उनसे मिलने नहीं दिया गया. इस दौरान वो डायरी लिख रहे थे जिसे मौत के बाद जब्त कर लिया गया. 22 जून को अचानक मुखर्जी की सेहत खराब हो गई. जेल अधीक्षक को सूचना मिली. एक टैक्सी मौके पर पहुंची और मुखर्जी को राजकीय अस्पताल में भर्ती कराया गया. वहीं इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई.
कहा गया कि श्यामाप्रसाद मुखर्जी की हत्या कराई गई थी. नेहरू के खिलाफ विरोधियों ने लामबंदी करके खूब आरोप लगाए. मुखर्जी की मां जोगमाया देवी ने नेहरू के 30 जून, 1953 के शोक सन्देश का 4 जुलाई को उत्तर देते हुए पत्र लिखा जिसमें उन्होंने उनके बेटे की रहस्मयी परिस्थितियों में हुई मौत की जांच की मांग की. हालांकि तत्कालीन सरकार ने इस मांग को ठुकरा दिया. कहा गया कि सभी लोगों से बात करके इस नतीजे पर पहुंचा गया है कि मुखर्जी का पूरा ख्याल रखा गया था. बाद में ये भी मालूम चला कि मुखर्जी को ऐसा इंजेक्शन लगाया गया था जो उनकी सेहत पर गलत प्रभाव कर गया. आज तक श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मौत पर दूध का दूध और पानी का पानी नहीं हो सका. अब जेपी नड्डा के बयान के बाद ये बात फिर उठी है.

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