कैसे मोदी सरकार बनाएगी रेलवे को बेहतर, क्या निजीकरण से होगा बीमार रेलवे का इलाज?

भारतीय रेलवे के अच्छे दिन लाने की कोशिश में मोदी सरकार 2 ने एक और कदम बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है. कुछ चुनिंदा रूट्स पर यात्री ट्रेनों को चलाने की जिम्मेदारी प्राइवेट कंपनियों को दी जा सकती है, 100 दिनों के भीतर इसके लिए टेंडर भी मंगाए जा सकते हैं, मोदी सरकार की कोशिश है कि यात्रियों को और ज्यादा बेहतर सुविधाएं मुहैया कराई जा सकें.
जब भी भारतीय रेल का ज़िक्र होता है तब ऐसी तस्वीर ज़ेहन में आती है जो खुश करने वाली तो कतई नहीं होती. सरकारें आईं और चली गयीं लेकिन रेलवे की हालत बहुत खराब से थोड़ा कम खराब भी नहीं कर पाईं. हालांकि मोदी सरकार आयी तो उसने रेलवे की बेहतरी के लिए काम करना शुरु किया, टिकटिंग सिस्टम को दुरुस्त करने की कोशिश की हालांकि अभी और ज्यादा सुधार की गुंजाइश है.
मोदी सरकार के दावों के मुताबिक नई ट्रेनें शुरू की गईं और पटरियों को ठीक किया गया. सफर के वक्त को घटाने के लिए सेमी हाईस्पीड ट्रेनों की शुरूआत की गई है और बुलेट ट्रेन पर अभी काम चल रहा है, उम्मीद है जल्दी ही अहमदाबाद से मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन गोली की रफ्तार से भागती हुई दिखेगी. वहीं अब मोदी सरकार 2 ने खस्ताहाल रेलवे को ठीक करने की दिशा में एक और कदम बढ़ाने का सोचा है, मोदी सरकार ने रेलवे में प्राइवेट कंपनियों को मौका देने की योजना बनाई है. प्रस्ताव के मुताबिक कुछ खास रूट पर निजी कंपनियों को ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी
रेल राज्य मंत्री सुरेश अंगड़ी ने कहा है कि इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए सरकार की ओर से 100 दिनों का वक्त दिया गया है. इसी एजेंडे पर काम करते हुए रेलवे ने एक प्रपोजल तैयार कर आईआरसीटीसी को तो भेजा ही है लेकिन उसके साथ एक टीम को जिम्मेदारी दी गई है कि इस प्रपोजल पर काम शुरू करें.
रेलवे के निजीकरण का जो प्रस्ताव आया है वो क्या है?
अब तक सामने आई जानकारी के मुताबिक राजधानी, शताब्दी और दुरंतो जैसी प्रीमियम ट्रेनों के निजीकरण की शुरुआती योजना पर विचार हो रहा है. यात्रियों से जो किराया मिलेगा वो निजी कंपनी ही वसूलेगी लेकिन निजी कंपनी रेल चलाने के एवज में रेल मंत्रालय को पैसा दिया करेगी. 100 दिनों के भीतर रेलवे प्राइवेट कंपनियों की बोलियां मंगवा सकता है. कुछ ट्रेनों को प्राइवेट हाथों में देना एक अच्छा फैसला हो सकता है क्योंकि जिस तरह का फर्क हम सरकारी बैंकों और प्राइवेट बैंकों की सेवाओं में देखते हैं, हो सकता है आने वाले वक्त में यही फर्क रेलवे में भी देखने को मिले.
इससे रेलवे का फायदा होगा या नुकसान?
टूरिज्म को देखते हुए जो अहम रूट हैं उनपर ट्रेन चलाने के लिए निजी क्षेत्र को मौक दिया जा सकता है और दो बड़े शहरों को जोड़ने वाले रूट पर भी फैसला हो सकता है. इससे पहले कई स्टेशनों पर मिलने वाली सुविधाओं को निजी हाथों में दिया जा चुका है.

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