मध्यप्रदेश में 15 साल में 35 हजार करोड़ खर्च, पानी मिला सिर्फ छह फीसदी ग्रामीणों को!

मध्यप्रदेश इन दिनों भीषण जल संकट की चपेट में है. शहर और गांवों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है. राज्य के साढ़े तीन सौ से ज्यादा नगरीय निकाय सुबह शाम पानी नहीं दे पा रहे. कुछ जगहों पर तीन तो कहीं दो दिन छोड़कर पानी दिया जा रहा है. यही हाल गांवों में है, जहां पानी लाने के लिए कुछ जगहों पर प्रदेश की सीमा पार करनी पड़ती है. तो कहीं सूखे कुंए में उतरकर पानी लाना पड़ता है. जानते हैं क्यों...क्योंकि सरकारी तिजोरी से पिछले 15 सालों में लगभग 35,000 करोड़ रुपये खर्च हुए लेकिन पानी मिला सिर्फ छह फीसदी ग्रामीण आबादी को ही.
नल से पानी भेजने के लिए इतने पैसे खर्च हुए, बावजूद इसके आगर मालवा जिला मुख्यालय से महज 9 किलोमीटर की दूरी पर पालड़ा गांव में 6 साल का देवराज खेल के मैदान के बजाए घंटे भर संघर्ष करता है ताकि एक बाल्टी पानी भर ले जल्दी से घर पहुंचे, बर्तन खाली करे, फिर से नलके पर उसी संघर्ष के लिए चल दे ... यह कहानी रोज की है. इसी गांव में 70 साल की धापू बाई के चेहरे पर पसीने की लकीरें उम्र को छिपा रही हैं, मगर दो घंटे की कसरत के बाद जो खुशी है वो नहीं छिप रही. घर पर आराम करने की उम्र है, लेकिन इस तरह पानी के लिए जद्दोजहद ज़िंदगी का हिस्सा है.
    
पानी की इस लड़ाई में उम्र का कोई बंधन नहीं, बच्चे, बूढ़े और जवान, सबकी बराबर भागीदारी है. ढाई हजार आबादी वाले पालड़ा गांव में करीब दर्जन भर हैंडपम्प और ट्यूबवेल हैं जो कि  गर्मी शुरू होते ही सब दम तोड़ देते हैं. तीन साल पहले डेढ़ करोड़ रुपये से नल जल योजना का काम शुरू हुआ, लेकिन घरों में पानी आज तक नहीं पहुंचा.

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