'विपक्ष की संख्या ही नहीं, हैसियत भी घटी'

सत्रहवीं लोकसभा का पहला सत्र 17 जून से शुरू हो रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का यह दूसरा कार्यकाल है. इस बार भाजपा के पास 303 सीटें हैं, पहले से भी ज़्यादा. पार्टी को बहुमत या सरकार चलाने के लिए किसी तरह के गठबंधन की ज़रूरत ना तो 2014 में थी और ना ही 2019 में है.
पर भाजपा नेतृत्व ने पिछली बार की तरह इस बार भी एनडीए का बैनर बरकरार रखने का फैसला किया. विपक्ष पहले की तरह ही सिमटा हुआ सा है. कांग्रेस की पिछले चुनाव में 44 सीटें थीं, इस बार 52 हैं. तीसरे नंबर पर द्रमुक है, उसे 23 सीटें मिली हैं. चौथे स्थान पर तृणमूल और वाईएसआर कांग्रेस हैं, जिन्हें 22-22 सीटें मिली हैं. समझा जाता है कि वाईएसआर कांग्रेस संसद में अपने आपको विपक्ष के व्यापक दायरे में रखने से परहेज़ करेगी.
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मतलब ये कि विपक्षी दायरे के सिर्फ़ तीन ही दल हैं, जिनके पास 20 से अधिक सीटें हैं. ये हैं-कांग्रेस, टीएमसी और द्रमुक. वामपंथी खेमा और सिमट गया है. यह उसका ऐतिहासिक पराभव है-भाकपा के खाते में 2 और माकपा के खाते में 3 सीटें आई हैं. इस तरह, सत्रहवीं लोकसभा में सिर्फ विपक्ष की संख्या में ही कटौती नहीं है, विपक्षी-राजनीति की हैसियत भी घटी है.
विपक्ष के सबसे बड़े दल-कांग्रेस ने अभी तक अपने संसदीय दल के नेता के नाम का ऐलान भी नहीं किया. यह पहला मौका है, जब संसद के नये सत्र से पहले विपक्ष की कोई साझा बैठक भी नहीं हुई. भारतीय लोकतंत्र के लिए ये लक्षण बहुत शुभ नहीं हैं. सत्र के शुरुआती दो दिन नई लोकसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों के शपथ ग्रहण आदि में बीत जाएंगे. 19 जून को लोकसभाध्यक्ष के लिए सदन में मतदान होना है.
समझा जाता है कि मतदान की नौबत नहीं आएगी. सत्ताधारी गठबंधन के प्रचंड बहुमत को देखते हुए विपक्ष की तरफ से शायद ही किसी तरह की चुनौती मिले! इसलिए नये लोकसभाध्यक्ष के नाम का फैसला 18 जून को ही हो जाएगा.
संसदीय कार्यसूची में उस दिन लोकसभाध्यक्ष पद के लिए नामांकन की तारीख तय है. इसी सत्र में 5 जुलाई को केंद्रीय बजट भी पेश होना है. उससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 20 जून को संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करेंगे.
संसदीय नियमों और परंपरा के हिसाब से हर आम चुनाव के बाद नवगठित लोकसभा के पहले अधिवेशन के दौरान राष्ट्रपति का संबोधन होता है. फिर उनके अभिभाषण पर संसद के दोनों सदनों में पेश सरकार के धन्यवाद प्रस्ताव पर विस्तार से चर्चा होती है. चुनावी नतीजों से जहां सत्तापक्ष के हौसले बुलंद हैं, वहीं विपक्ष ज़रूरत से ज़्यादा पस्त नज़र आ रहा है. विपक्षी खेमे के सबसे बड़े दल कांग्रेस मे ज्यादा निराशा नज़र आ रही है.

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