क्या ममता बनर्जी धर्म की राजनीति भड़का रही हैं?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वह 15 जून को होने वाली नीति आयोग की बैठक में हिस्सा नहीं लेंगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में ये बैठक होनी है जिसमें देश के सभी राज्यों में मुख्यमंत्री, केंद्र शासित राज्यों के लेफ्टिनेंट गवर्नर सहित कैबिनेट मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहेंगे.
नई मोदी सरकार की ये पहली नीति आयोग की बैठक है जिसमें पानी के संकट और कृषि जैसे मुद्दों पर चर्चा संभव है लेकिन ममता बनर्जी ने यह कहते हुए इस बैठक से किनारा कर लिया है कि यह बैठक उनके लिए 'निरर्थक' है.
उन्होंने कहा, "नीति आयोग के पास न तो कोई वित्तीय शक्तियां हैं और न ही राज्य की योजनाओं में मदद के लिये उसके पास शक्ति है. ऐसे में किसी भी प्रकार की वित्तीय शक्तियों से वंचित संस्था की बैठक में शामिल होना मेरे लिये फालतू है." ममता बनर्जी 30 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कैबिनेट के शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल नहीं हुई थीं.
इस सवाल पर बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार निर्मल्या मुखर्ज़ी कहते हैं,"एक बात बेहद साफ़ है कि ममता बनर्जी एक राजनेता हैं, वो कभी आर्थिक एजेंडा को सामने नहीं रखती हैं. इसका सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि वह जब से राज्य की मुख्यमंत्री हैं तब से अब तक कभी चेंबर ऑफ़ कॉमर्स की एक भी बैठक में शामिल नहीं हुई. इंडस्ट्रीयल और आर्थिक मामलों से जुड़े एजेंडे वाली बैठक होती है उससे ममता बनर्जी का कोई लेना-देना नहीं होता.''
"बंगाल में केंद्र की 67 योजनाएं थीं और इसे घटा कर चार या पांच कर दिया गया है. इसके लिए वो कह रही हैं कि नीति आयोग उनके काम का नहीं है. लेकिन नीति आयोग जो करेगा या नहीं करेगा उससे पहले उन्हें ख़ुद तो राज्य की ख़ातिर इस बैठक में शामिल होना ही चाहिए."
वो कहते हैं, ममता बनर्जी अपना राजनीतिक एजेंडा लेकर चलती हैं. वो यह नहीं देखतीं कि इससे राज्य का भला हो रहा है या नहीं. वो वही करती हैं जो उनके राजनीतिक एजेंडे के अनुकूल होता है."
"मोदी ने अपनी रैली में बोला भी था कि दीदी हमारी स्कीम में भी अपना ठप्पा लगा लेती है, ये बात बिलकुल सही है. टीएमसी कार्यकर्ता केंद्र सरकार की योजनाओं को भी ममता बनर्जी सरकार की योजना बताते हैं और गांव के रहने वाले लोग जिन्हें सच नहीं पता होता वो इसे ही सच मान लेते हैं."
सुबीर कहते हैं, "लोकसभा चुनाव दूसरे राज्यों के लिए अहम था लेकिन यहां लोकसभा चुनाव को बीजेपी भी सेमीफ़ाइलन के तौर पर देख रही है, टीएमसी भी इसे यही मान रही है. दोनों ही पार्टियां 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर फ़ोकस किए हुए हैं. ममता बनर्जी हार के बाद इस्तीफ़ा नहीं देतीं वह हमेशा अपने संगठन को अहमियत देती हैं. बाकी नेता हार पर इस्तीफ़े की पेशकश कर देते हैं लेकिन ममता ने सीएम पद से इस्तीफ़े का प्रस्ताव रखा लेकिन संगठन के लिए वह हमेशा खड़ी रहती हैं. वह फ़ाइटर प्रवृत्ति की नेता हैं."

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