राजनीतिक नजरअंदाजी झेल रहे नीतीश कुमार, क्या फिर छोड़ देंगे एनडीए का साथ?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राजनीति का सुपरस्टार राजेश खन्ना कहा जा सकता है. जिस तरह राजेश खन्ना कभी भी सुपरस्टार का तमगा नहीं खोना चाहते थे उसी तरह से नीतीश कुमार कभी भी राजनीति में ख़ुद को किनारे होते नहीं देखना चाहते.
मोदी कैबिनेट में जेडीयू को मनमाफिक संख्या नहीं मिलने से नीतीश कुमार नाराज़ हैं. नीतीश की नाराज़गी का असर यह हुआ कि बिहार में रविवार को जब आठ नए मंत्रियों ने पद व गोपनीयता की शपथ ली तो उसमें भारतीय जनता पार्टी (BJP) और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) का कोई विधायक शामिल नहीं हुआ.
दरअसल गुरुवार को नरेंद्र मोदी ने जब बतौर प्रधानमंत्री दूसरी बार शपथ ली तो उनके साथ 57 अन्य मंत्रियों ने भी शपथ लिया लेकिन इनमें से कोई भी जेडीयू का नहीं था. नीतीश कुमार बुधवार से ही दिल्ली में थे और इस दौरान वो सांसदों की संख्या के आधार पर कैबिनेट में जगह देने की मांग कर रहे थे. आख़िरी समय तक जब संख्या को लेकर बात नहीं बनी तो नीतीश ने एक भी मंत्री पद लेने से मना कर दिया.
हालांकि मीडिया से बात करते हुए नीतीश कुमार ने स्पष्ट किया कि उन्हें कोई नाराज़गी नहीं है लेकिन वो सांकेतिक भागीदारी नहीं अनुपातिक भागीदारी चाहते हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘जेडीयू के लोकसभा में 16 सांसद और राज्यसभा में छह सांसद हैं. पार्टी नेताओं का भी कहना है कि हमें सिम्बॉलिक रिप्रेजेंटेशन (सांकेतिक भागीदारी) की जरूरत नहीं. गठबंधन में होने के नाते जेडीयू बीजेपी के साथ खड़ी है.’
हालांकि तब मीडिया से बात करते हुए नीतीश कुमार ने किसी तरह की नाराज़गी की बात भले ही ख़ारिज़ कर दी हो लेकिन उसका असर रविवार को बिहार कैबिनेट के विस्तार में देखने को मिला.
इतना ही नहीं बाद में रविवार (2 जून) को ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना स्थित हज हाउस में इफ्तार पार्टी का आयोजन किया था जिसमें बीजेपी का कोई नेता नहीं दिखा. साथ ही बीजेपी की इफ़्तार पार्टी में भी जेडीयू का कोई नेता नहीं दिखा.

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