यू टर्न मास्‍टर हैं ममता बनर्जी, जानें कब-कब अपने ही बयान से पलटीं टीएमसी नेता

पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने बुधवार को अपने पूर्व के बयान से पलटते हुए कहा कि उन्‍होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होने का फैसला किया है। ममता ने बयान जारी कर कहा कि शपथ ग्रहण लोकतंत्र की महत्वपूर्ण परंपरा है, लेकिन इसे राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। दरअसल, ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में बीजेपी के चुनावी हिंसा में 54 राजनीतिक हत्‍याओं के दावे के विरोध में यह फैसला किया है। ममता ने कहा कि ये मौतें 'राजनीति से जुड़ी नहीं हैं।' ऐसा पहली बार नहीं है कि ममता अपने बयान से पलट गई हैं। वह पहले भी ऐसा कई बार कर चुकी हैं। 
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वर्ष 2014 में पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में ममता बनर्जी नहीं आई थीं। वर्ष 2012 में गुजरात के सीएम के रूप में नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में ममता बनर्जी निमंत्रण के बाद भी शामिल नहीं हुई थीं। साल 2005 में ममता बनर्जी ने लोकसभा के अंदर अवैध बांग्‍लादेशियों का मुद्दा बहुत जोर-शोर से उठाया और कागज का पुलिंदा लहराते हुए तत्‍कालीन लोकसभा अध्‍यक्ष चरणजीत सिंह अटवाल से कहा कि उन्‍हें इस मुद्दे पर बोलने नहीं दिया जा रहा है। 
बांग्‍लादेशियों पर यू टर्न 
ममता ने आरोप लगाया कि सीपीआई-एम की मिलीभगत से कई बांग्‍लादेशियों का नाम वोटर लिस्‍ट में जोड़ा गया है। सीपीआई-एम उस समय पश्चिम बंगाल में सत्‍ता में थी। पिछले साल ममता ने एनआरसी बिल को लेकर केंद्र की मोदी सरकार का कड़ा विरोध किया था। इस बिल के जरिए असम के करीब 40 लाख लोगों को नागरिकता से वंचित किया जा सकता है। इनके ऊपर बांग्‍लादेशी होने का आरोप है। 

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जीएसटी पर यू टर्न 
ममता बनर्जी ने जीएसटी के मुद्दे पर मोदी सरकार का समर्थन किया था और इस बिल को जल्‍द पारित कराने के लिए पश्चिम बंगाल के वित्‍त मंत्री अमित मित्रा को 'निर्देश' दिया था। उस समय मित्रा जीएसटी पर राज्‍यों के वित्‍त मंत्रियों की कमिटी के चेयरमैन थे। एक साल बाद जब जीएसटी को पूरे देश में प्रभावी होना था तो ममता ने जीएसटी कानून का विरोध करना शुरू कर दिया। उन्‍होंने दावा किया कि यह कानून असंगठित क्षेत्र के खिलाफ है। ममता ने इस बिल को राज्‍य विधानसभा से पारित कराने में भी काफी देरी की। ऐसा तब था जब जीएसटी बिल को राज्‍य सभा से पारित होने के 30 दिन के भीतर 50 फीसदी राज्‍यों से मंजूरी मिलना जरूरी था।

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राजनीतिक यू टर्न 
ममता बनर्जी के राजनीतिक करियर का अब तक सबसे बड़ा यू टर्न संभवत: एनडीए सरकार से अलग होना था। वर्ष 2001 में तत्‍कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी तहलका डॉट कॉम के स्टिंग ऑपरेशन के बाद भ्रष्‍टाचार के आरोपों से घिर गई थी। ममता बनर्जी उस समय सरकार से हट गईं और कांग्रेस के साथ मिलकर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ा। वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वह एनडीए में आईं और कोयल तथा खनन मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में शामिल हुईं। इससे उनके मृतप्राय पड़े राजनीतिक करियर को नई ऊर्जा मिली.

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