मोदी के ‘चुपचाप कमलछाप’ ने कैसे गिराया बंगाल में टीएमसी का ग्राफ?

मई महीने की शुरूआत में जब पीएम मोदी ने बांकुरा में मंच से खड़े होकर नारा लगवाया था- ‘चुपचाप-कमलछाप’ तब शायद ममता बनर्जी को अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि उनकी मुसीबत शुरू हो चुकी है. बांकुरा वो लोकसभा सीट थी जो 2014 में मुनमुन सेन ने टीएमसी के लिए जीती थी लेकिन इस बार उन सुभाष सरकार ने इसे बीजेपी के लिए जीता जो 2014 के चुनाव में तीसरे नंबर पर आए थे.
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मोदी का नारा वाकई बंगाल ने गंभीरता से लिया था. ममता को पता भी नहीं चला और दनादन वोट कमल पर पड़े. बांकुरा से हारे टीएमसी प्रत्याशी सुब्रत मुखर्जी ने तो सीपीएम पर बीजेपी से पैसे लेकर उनके खिलाफ वोट डलवाने का आरोप लगा दिया.
वैसे राज्य में कई लोग कहते हैं कि टीएमसी ने ममता को उखाड़ने के लिए बीजेपी को चुपके से समर्थन तो किया है, उधर टीएमसी के अंतुष्टों पर भी चुपके से वोट ट्रांसफर करवाकर भितरघात करने के आरोप भी सामने आए हैं.
श्चिम बंगाल के खाते में 42 लोकसभा सीटें हैं जिनमें से 34 टीएमसी के पास थीं लेकिन चुनाव के बाद ये 22 ही रह गईं. जिस बीजेपी के पास 2 सीटें थीं उसने 18 सीटें झटक लीं. वोट प्रतिशत के मामले में भी दोनों पार्टियां एक-दूसरे से बहुत दूर नहीं रही. टीएमसी को 43.3% वोट हासिल हुए तो बीजेपी को 40.3% वोट मिले.
ज़ाहिर है ये बीजेपी का अब तक सूबे में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है. जिस बंगाल में दस साल पहले वो तीसरे नंबर पर आने के लिए जूझती थी वहां अब वो पहले नंबर के मुकाबले में है.
लोकसभा चुनाव के हाहाकारी नतीजों के आधार पर अगर गणित लगाएं तो आगामी विधानसभा चुनाव दीदी के लिए किसी भी तरह आसान नहीं रहनेवाले. बीजेपी को पिछले लोकसभा चुनाव में महज़ 28 विधानसभाओं में बढ़त मिली थी लेकिन इस बार ये 128 है. इसी तरह टीएमसी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में 214 विधानसभाओं में बढ़त देखी थी लेकिन ये इस बार बस 158 थी. राज्य अगले विधानसभा चुनाव से सिर्फ 2 साल से भी कम दूर है.

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