हरियाणा की जाट राजनीति पर ग्रहण, लोगों ने दिग्गज जाट नेताओं को नकारा

हरियाणा की दस लोकसभा सीटों के चुनाव नतीजों ने प्रदेश के जाट नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह और सांसद धर्मबीर सिंह को छोड़कर खुद भाजपा के जाट नेता हाशिये पर हैं। कांग्रेस, इनेलो और जननायक जनता पार्टी के जाट नेताओं के सामने जहां अपने सुरक्षित राजनीतिक भविष्य की चुनौती खड़ी हो गई, वहीं कई जाट नेताओं ने भाजपा में अपनी राह तलाशनी शुरू कर दी है। भाजपा इन नेताओं को गले लगाने में किसी तरह की जल्दबाजी के मूड में नहीं है।
हरियाणा का चुनाव भले ही मोदी के राष्ट्रवाद और मनोहर सरकार के कामकाज पर लड़ा गया है, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में जाट और गैर जाट की राजनीति का भी अहम रोल रहा है। हरियाणा पिछले साढ़े चार साल में जाट आरक्षण आंदोलन समेत तीन बड़ी हिंसाओं का दंश झेल चुका है। राजनीतिक दलों ने इस हिंसा को अपने-अपने ढंग से कैश करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया। इसका हश्र यह हुआ कि हरियाणा जाट और गैर जाट दो खेमों में बंट गया है।
लोकसभा चुनाव में हरियाणा में इसी जाट और गैर जाट राजनीति की खेमेबंदी ने अहम भूमिका निभाई है। जिस तरह से कई सीटों पर जाट मतदाता एकजुट नजर आए, उसी तरह से गैर जाट मतदाताओं की एकजुटता उन पर भारी पड़ गई है। हिसार और भिवानी के चुनाव नतीजे अपवाद हैं। हिसार में निवर्तमान केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के आइएएस बेटे बृजेंद्र सिंह और भिवानी-महेंद्रगढ़ में चौ. धर्मबीर ने चुनाव लड़ा। हिसार में बृजेंद्र सिंह के मुकाबले जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला थे, जबकि भिवानी में धर्मबीर के सामने कांग्रेस की श्रुति चौधरी थी। धर्मबीर भाजपा में अपनी छवि बड़े जाट नेता के रूप में स्थापित नहीं कर पाए हैं।

More videos

See All