दिल्ली में AAP ने खोया जनाधार - Kejriwal की ये ग़लतियाँ हैं ज़िम्मेदार

आम आदमी पार्टी के नेता आज दिल्ली के वोटर्स से शायद यही कह रहे होंगे। पिछले पाँच साल दिल्ली की सियासत के सबसे ड्रामेटिक पाँच साल रहे। पहले 49 दिनों की सरकार, फिर रिज़ाइन फिर से चुनाव और फिर लिखा गया इतिहास। आप ने 67 सीटें हासिल कर ली। 70 में से 67। कांग्रेस शून्य पर पहुँच गई। लेकिन पाँच सालों के अंदर ही बीजेपी और कांग्रेस को दिल्ली से बाहर कर देने वाली आप जनाधार के मामले में लगभग शून्य पर आ गई। 2014 के चुनावों में सातों सीट पर आप के सांसद उम्मीदवार दूसरे पोज़ीशन पर थे। लेकिन इन चुनावों में गुग्गन सिंह और राघव चड्ढा के अलावा कोई और दूसरे पोज़ीशन के लिए लड़ता भी नहीं दिख रहा। दिल्ली के लोगों ने आप को छज्जे पर बिठाकर गिरा दिया। चाहे वो आतिशी हों या दिलीप पांडे या कोई और ट्विटर की लोकप्रियता पोलिंग बूथ तक नहीं पहुँचा पाए। लेकिन इस स्थिति के लिए ज़िम्मेदार खुद केजरीवाल ही हैं। छवि थी उनकी नायक फिल्म के अनिल कपूर वाली, जो सवाल करता था आँखों में आँखें डाल कर। लेकिन धीरे-धीरे नायक का अनिल कपूर की छवि रखने वाले अरविंद इंकलाब के अमिताभ बन गए। अरविंद बेबस दिखे। उंगली उठाने वाले अरविंद के हाथ जुड़ गए। सवाल उठाने वाले होंठों पर माफ़ी आ गई। और जिनको कभी भ्रष्ट कहा उनसे गले मिलने को बेताब दिखने लगे। लोगों ने जिसे हकीकत समझा वो ख़्वाब लगने लगा। अरविंद जो नई राजनीति का वादा कर रहे थे, पारंपरिक राजनीति के पचड़ों में उलझते दिखे। वैकल्पिक राजनीति के नाम पर वो भी मुस्लिम वोट, बनिया वोट, दलित वोट आदि आलाप करने लगे। नतीज़ - विश्वसनीयता खो दी। और धीरे धीरे जनाधार भी खो रहे हैं। इन लोकसभा चुनावों में वोटशेयर के मामले में दिल्ली में आप का तीसरे नंबर पर आना लगभग तय है। ये हार केवल चुनावी हैर नहीं आप के अस्तित्व की हार साबित हो

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