टिहरीः दो खानदानों की लड़ाई है देश के सबसे ऊंचे बांध वाले संसदीय क्षेत्र में

भारत के सबसे ऊंचे बांध, टिहरी बांध, की वजह से दुनिया भर में मशहूर टिहरी लोकसभा क्षेत्र में बाकी उत्तराखंड की तरह कांग्रेस और बीजेपी में ही सीधा मुकाबला है. राज्य की बाकी संसदीय सीटों की तरह यहां भी हमेशा से मुख्यतः इन्हीं दोनों पार्टियों में ही मुकाबला रहा है. उत्तराखंड में किसी राजपरिवार का नाम आज भी चलता है तो वह टिहरी का शाह राजघराना है. चुनावों में भी इस परिवार का दबदबा रहा है. टिहरी से वर्तमान सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह भी इसी परिवार से हैं.
देश में पहली बार 1952 में हुए आम चुनाव में टिहरी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र से  राज परिवार से राजमाता कमलेंदुमति शाह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की थी, उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा सिंह को हराया था. तब इस संसदीय सीट में गढ़वाल (पौड़ी) और बिजनौर के कुछ इलाके शामिल थे.  टिहरी संसदीय क्षेत्र पहली बार 1957 में अस्तित्व में आया. इस लोकसभा सीट को उत्तरकाशी, देहरादून और टिहरी गढ़वाल जिले के कुछ हिस्सों को शामिल कर बनाया गया है. टिहरी और गढ़वाल दो अलग नामों को मिलाकर इस ज़िले का नाम रखा गया है. 1957 के चुनाव में यहां कांग्रेस के टिकट पर कमलेंदुमति शाह के बेटे मानवेंद्र शाह ने जीत दर्ज की और सांसद चुने गए. उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार श्याम चंद नेगी को भारी वोटों के अंतर से हराया. मानवेंद्र को 1,10,687 वोट जमा किए, तो श्याम चंद नेगी को मात्र 18,197 वोट ही मिले.
 

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