Congress को गठबंधन में क्यों नहीं मिली जगह |

"उत्तर प्रदेश - यानी कि वो रास्ता जहाँ जाए बिना संसद तक नहीं पहुँचा जा सकता। कांग्रेस के लिहाज़ से वह राज्य जहाँ किसी भी तरह उसे बीजेपी को रोकने की कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि बीजेपी को रोक पाना ही कांग्रेस की जीत होती। ये हम 2004 के चुनाव में देख चुके हैं। मात्र 9 सीटें हासिल हुई थी कांग्रेस को SP औऱ BSP के 58 सांसदों की मदद से यूपीए की सरकार चलती रही। लेकिन राहुल गाँधी की सोच शायद जुदा है और ग़लत भी। कांग्रेस आगामी चुनाव SP, BSP गठबंधन से अलग लड़ेगी। सपा-बसपा जिन्होंने एक दूसरे के साथ से उपचुनावों में तीन जगहों पर बीजेपी को पटखनी दी - वे साथ आए तो इस सफर में कांग्रेस को शामिल नहीं किया गया। क्यों? तार जुड़े हैं मध्य प्रदेश से। कांग्रेस मप्र में सत्ता की दहलीज़ तक ही पहुँच पाई। लेकिन सपा और बसपा के समर्थन के बाद वह सत्ता पर बैठी। बदले में वादा किया कि सपा के इकलौते विधायक को मंत्रीपद भी सौंपेगी। लेकिन सत्ता मिल गई तो न वादा याद रहा न विधायक। अखिलेश यादव ने एक इंटरव्यू में कहा कि कांग्रेस ने विधायक को इसलिए मंत्रीपद नहीं दिया क्योंकि इससे प्रदेश में सपा को बढ़ने का मौका मिलता जो कांग्रेस नहीं चाहती। अखिलेश ने कहा कि जब उत्तर प्रदेश में गठबंधन की बातचीत चल रही थी तब कांग्रेस मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के जश्न में डूबी हुई थी। उपचुनावों के दौरान भी कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार खड़े किए। इन हालातों में आखिर कैसे कांग्रेस को 8-10 सीटें दी जा सकती हैं? प्रियंका गाँधी का भीम आर्मी प्रमुख से मिलना एक नई राजनैतिक सुगबुगाहट को जन्म दे रही है। लेकिन क्या ये सुगबुगाहट आगामी चुनावों तक कांग्रेस के लिए कोई सकारात्मक असर छोड़ पाएगा? - संभावना कम ही लगती है। दरअसल लोकसभा चुनाव 2019 कांग्रेस के लिए केवल जीत हार का मसला नहीं बल्कि अस्तित्व का भी मसला है।"

More videos

See All