मैनुअल स्कैवेंजर्स के पैर धोकर खुद को महिमामंडित करवाने का क्या मकसद?

सफ़ाई कर्मचारियों के पुनर्वास के लिए आवंटित आधी राशि कम कर देने वाली मोदी सरकार के सफ़र की शुरुआत स्वच्छ भारत के नारे के साथ हुई थी। लेकिन आखिरी साल में भी गंदगी को साफ करने के लिए गंदगी में उतरने वाले लोगों की मौत ही इस सफ़र का हासिल रही। पिछले चार महीनों में लगभग एक दर्ज़न सफ़ाई कर्मचारियों की मौत सीवेज में उतरकर इसे साफ़ करने के कारण हुई। 
 
मैनुअल स्कैवेंजिंग को बंद करने के लिए पहला कानून बना 1993 में। 2013 में लोगों को सेप्टिक टैंक्स, या सीवेज या नदी मे उतरकर सफ़ाई करने के लिए नियुक्त करने पर रोक लगा दी गई है। लेकिन एक सर्वे के मुताबिक आज भी 12 राज्यों के लगभग 55000 लोग मैनुअल स्कैवेंजिंग के कुचक्र में फँसे हैं।
 
National Safai Karamcharis Finance and Development Corporation (NSKFDC) के मुताबिक 2013-14 में मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास के लिए 55 करोड़ रुपए जारी किए गए और उसके बाद से सितंबर 2017 तक कोई भी पैसा जारी नहीं किया गया। बिजवाडा विल्सन कहते हैं कि 2014 में 2019 तक देश को साफ कर देने का वादा करने वाले मोदी ने मैनुअल स्कैवेंजिंग की समस्या को बनाए रखा है। सरकार के द्वारा प्रस्तावित खर्च प्रति मैनुअल स्कैवेंजर की दृष्टि से 10000 रुपए कम है। वे कहते हैं कि इस सरकार का सफ़ाईकर्मियों से कोई लेना देना नहीं है। देश से मन की बात करने वाले मोदी की मन की बात में कभी भी सफ़ाई कर्मियों के उत्थान की चिंता नहीं होती।

पाँव धो देने से उन लोगों के सरों से मैले को बोझ नहीं हट जाएगा। उनके जीवन में सम्मान नहीं आ जाएगा। आप तो सबसे गले मिलते हैं मोदी जी। मैनुअल स्कैवेंजर्स के पैर धोकर खुद को महिमामंडित करवाने का क्या मकसद?

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