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वीआइपी संस्कृति को खत्म करने के लिए रेल मंत्री ने उठाए कदम
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10 Oct 2017

रेल मंत्री ने रेलवे में वीआइपी संस्कृति को खत्म करने के लिए जो आदेश जारी किया वह स्वागत योग्य है, लेकिन इस आदेश से यह भी पता चल रहा है कि ऐसी ही वीआइपी संस्कृति अन्य अनेक विभागों में भी व्याप्त हो सकती है। रेल मंत्री के इस आदेश से यह भी स्पष्ट होता है कि विशिष्ट व्यक्तियों के वाहन में लालबत्ती के इस्तेमाल को रोकने के फैसले से वीआइपी संस्कृति का पूरी तौर पर खात्मा नहीं हुआ है। इसके अनेक प्रमाण भी रह-रहकर सामने आते रहते हैं। कभी कोई मंत्री हवाई यात्रा के दौरान विशिष्ट सुविधा की मांग करता दिखता है तो कभी कोई सुरक्षा के अनावश्यक तामझाम के साथ नजर आता है। इस सबसे यही इंगित हो रहा है कि वीआइपी संस्कृति को खत्म करने के लिए अभी और कई कदम उठाने होंगे। ऐसे कदम उठाने के साथ ही यह भी देखना होगा कि कहीं पिछले दरवाजे से वीआइपी संस्कृति वाले तौर-तरीके फिर से तो नहीं लौट रहे हैं। ऐसा इसलिए आवश्यक है, क्योंकि हमारे औसत शासक अभी भी सामंती मानसिकता से ग्रस्त नजर आते हैं। जैसे ही नेतागण सत्ता की ऊंची कुर्सी हासिल करते हैं, वे खुद को विशिष्ट दिखाने के लिए तरह-तरह के जतन करने में लग जाते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति शीर्ष नौकरशाहों की भी है। यह समझना कठिन है कि रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अथवा सदस्यों के दौरे के समय रेलवे महाप्रबंधकों के लिए उनकी अगवानी के लिए उपस्थित होना क्यों आवश्यक था?
यह आश्चर्यजनक है कि इससे संबंधित नियम पिछले 36 सालों से अस्तित्व में था और इसके पहले किसी ने भी उसे खत्म करने की जरूरत नहीं समझी। यह अच्छी बात है कि रेलमंत्री ने इस अनावश्यक व्यवस्था को खत्म करने के साथ ही अन्य अनेक फैसले लिए। इन फैसलों के तहत करीब तीस हजार वे कर्मचारी अब रेलवे की सेवा में लगेंगे जो अभी तक अधिकारियों के यहां घरेलू सहायक के तौर पर काम कर रहे थे। हैरत नहीं कि इसी तरह अन्य विभागों के भी कर्मचारी घरेलू सहायकों के रूप में शीर्ष अधिकारियों के घर में ड्यूटी बजा रहे हों। अच्छा यह होगा कि केंद्र सरकार और साथ ही राज्य सरकारों के स्तर पर सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी विभाग के अधिकारी कर्मचारियों को घरेलू सहायक के रूप में इस्तेमाल न करें। चूंकि वीआइपी संस्कृति के तहत खुद को आम लोगों से अलग एवं विशिष्ट दिखाने की मानसिकता ने कहीं अधिक गहरी जड़ें जमा ली हैं इसलिए उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए हर स्तर पर सक्रियता दिखानी होगी। वस्तुत: यह संस्कृति नहीं, एक कुसंस्कृति है और एक बुरी संस्कृति के रूप में इसका विस्तार हो जाने का ही यह दुष्परिणाम है कि शीर्ष पदों पर बैठे नेता एवं नौकरशाह आम लोगों की समस्याओं के समाधान करने को लेकर आवश्यक संवेदनशीलता का परिचय देने से इन्कार करते हैं। जब तक शासक वर्ग स्वयं को आम जनता से अलग एवं विशिष्ट मानता रहेगा तब तक जनसमस्याओं के समाधान की प्रक्रिया शिथिल ही रहने वाली है। यह आवश्यक हो जाता है कि रेल मंत्री ने अपने विभाग में वीआइपी संस्कृति को खत्म करने के लिए जैसे कदम उठाए वैसे ही कदम अन्य सभी मंत्री भी उठाएं।
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